अब ममी को ममी नहीं कहना चाहते संग्रहालय

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में चाऊ चाक विंग म्यूजियम ने पिछले हफ्ते अपनी मिस्र-प्रदर्शनी में रखीं बिना ढकीं ममी को हटा लिया. ऐसा मानव शरीर को प्रदर्शनी के लिए रखने के बारे में बदलते रवैये के चलते किया गया. डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट- 1881 में पुरातत्वविदों ने मिस्र के वैली ऑफ द किंग्स में मिस्र के राजा फेरो रैमसेस की ममी खोजी थी. तब से मिस्र में पाई गईं ममी रखना दुनियाभर के संग्रहालयों में लगाई जाने वालीं प्रदर्शनियों का एक अहम हिस्सा है. लेकिन पिछले हफ्ते सिडनी के एक म्यूजियम ने अपने यहां प्रदर्शित कुछ ममी हटा दीं. यह एक नए चलन की शुरुआत का संकेत है. मानव शरीरों को प्रदर्शित किया जाना चाहिए या नहीं, यह संग्रहालय जगत की ताजा बहस है. इसी बहस पर कदम उठाते हुए चाऊ चाक विंग म्यूजियम ने पिछले हफ्ते अपनी सभी बिना ढकीं ममी प्रदर्शनियों से हटा लीं. सिडनी यूनिवर्सिटी में बना यह चाऊ चाक म्यूजियम ऑस्ट्रेलिया में मिस्र की कलाकृतियों और खुदाई में मिली चीजों का सबसे बड़ा घर है. यहां 5,000 से ज्यादा चीजें रखी हैं जिनमें ममी के रूप में सहेजे गए मानव और जानवरों के अवशेष भी शामिल हैं. एक बार में ऐसे 300 से ज्यादा अवशेष प्रदर्शित किए जाते हैं. फिलहाल संग्रहालय में दो ममी प्रदर्शनी में रखी गई हैं. मेरुआ और होरस की ये ममी और सीटी स्कैन के जरिए तैयार किया गया इनका 3डी चित्रण दर्शकों के देखने के लिए उपलब्ध है. लेकिन मेरनाथिटीस में मिले एक ताबूत का सामान, खोपड़ी का अंदर का हिस्सा, मोम का कान, चमकदार मोती आदि प्रदर्शनी से हटा दिए गए हैं. वस्तु-मात्र नहीं है संग्रहालय प्रबंधन ने कहा कि जो ममी पट्टियों में लिपटी नहीं है, उसे हटाया जा रहा है. यह अब स्टोर रूम में रखा जाएगा और म्यूजियम के अधिकारी मिस्र के समुदायों और अधिकारियों के साथ मिलकर इस सामग्री के संवेदनशील रूप में प्रदर्शन के तरीके खोजने पर विचार करेंगे. म्यूजियम की वरिष्ठ क्यूरेटर डॉ. मेलनी पिटकिन ने कहा, सैकड़ों साल से शरीर के हिस्सों को संग्रहालयों में वस्तु-मात्र समझा जाता रहा है. हम उन्हें प्रदर्शित देखने के इतने आदि हो गए हैं कि भूल जाते हैं कि कभी वे जीते-जागते इंसान थे. डॉ. पिटकिन कहती हैं कि स्थानीय और विदेशों में रहने वाले मिस्री समुदाय के अलावा म्यूजियम देखने आने वाले दर्शकों के बीच मानव अवशेषों को प्रदर्शित करने से जुड़े रवैये और मूल्यों पर हुए विस्तृत और गहन अध्ययन के बाद इन अवशेषों को हटाने का फैसला लिया गया है. संग्रहालय ने अपने दर्शकों के बीच इस बात को लेकर एक सर्वेक्षण किया था. इसके अलावा सिडनी, मेलबर्न और एडीलेड में रहने वाले मिस्री मूल के 17 लोगों के एक फोकस ग्रुप के साथ दो दिन तक विचार-विमर्श किया गया. साथ ही, चाऊ चाक विंग म्यूजियम देख चुके मिस्री मूल के ऑस्ट्रेलियाई लोगों के बीच भी सर्वे किया गया. ममी को ममी ना कहें अब म्यूजियम मानव अवशेषों को प्रदर्शित करते हुए लिखी जाने वाली भाषा और संदेशों में भी बदलाव की योजना पर काम कर रहा है. जैसे कि द ममी रूम का नाम बदला जा सकता है. इसके लिए मिस्र के समुदाय के साथ चर्चा हो रही है. डॉ. पिटकिन बताती हैं, ममी शब्द अरबी भाषा के ममिया से आया है, जिसका अर्थ होता है एक तरह का कोयला. लेप किए जाने के बाद शरीर कैसा दिखता है, यह शब्द उसका प्रतीक है. यह साम्राज्वादी भाषा है जब 19वीं सदी में मिस्र को लेकर पश्चिमी दुनिया में जुनून था. डॉ. पिटकिन कहती हैं कि कमरे का नाम बदलते वक्त हमारा ध्यान मानव शरीर को एक शाश्वत रूप में बदल देने पर होगा, जो असल में ममीकरण का मुख्य मकसद था. वह कहती हैं, हम चाहते हैं कि दर्शक भी इस बात पर विचार करें कि मानव अवशेषों की देखरेख में संग्रहालयों को कितनी नैतिक जटिलताओं का सामना करना पड़ता है.(dw.com)

अब ममी को ममी नहीं कहना चाहते संग्रहालय
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में चाऊ चाक विंग म्यूजियम ने पिछले हफ्ते अपनी मिस्र-प्रदर्शनी में रखीं बिना ढकीं ममी को हटा लिया. ऐसा मानव शरीर को प्रदर्शनी के लिए रखने के बारे में बदलते रवैये के चलते किया गया. डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट- 1881 में पुरातत्वविदों ने मिस्र के वैली ऑफ द किंग्स में मिस्र के राजा फेरो रैमसेस की ममी खोजी थी. तब से मिस्र में पाई गईं ममी रखना दुनियाभर के संग्रहालयों में लगाई जाने वालीं प्रदर्शनियों का एक अहम हिस्सा है. लेकिन पिछले हफ्ते सिडनी के एक म्यूजियम ने अपने यहां प्रदर्शित कुछ ममी हटा दीं. यह एक नए चलन की शुरुआत का संकेत है. मानव शरीरों को प्रदर्शित किया जाना चाहिए या नहीं, यह संग्रहालय जगत की ताजा बहस है. इसी बहस पर कदम उठाते हुए चाऊ चाक विंग म्यूजियम ने पिछले हफ्ते अपनी सभी बिना ढकीं ममी प्रदर्शनियों से हटा लीं. सिडनी यूनिवर्सिटी में बना यह चाऊ चाक म्यूजियम ऑस्ट्रेलिया में मिस्र की कलाकृतियों और खुदाई में मिली चीजों का सबसे बड़ा घर है. यहां 5,000 से ज्यादा चीजें रखी हैं जिनमें ममी के रूप में सहेजे गए मानव और जानवरों के अवशेष भी शामिल हैं. एक बार में ऐसे 300 से ज्यादा अवशेष प्रदर्शित किए जाते हैं. फिलहाल संग्रहालय में दो ममी प्रदर्शनी में रखी गई हैं. मेरुआ और होरस की ये ममी और सीटी स्कैन के जरिए तैयार किया गया इनका 3डी चित्रण दर्शकों के देखने के लिए उपलब्ध है. लेकिन मेरनाथिटीस में मिले एक ताबूत का सामान, खोपड़ी का अंदर का हिस्सा, मोम का कान, चमकदार मोती आदि प्रदर्शनी से हटा दिए गए हैं. वस्तु-मात्र नहीं है संग्रहालय प्रबंधन ने कहा कि जो ममी पट्टियों में लिपटी नहीं है, उसे हटाया जा रहा है. यह अब स्टोर रूम में रखा जाएगा और म्यूजियम के अधिकारी मिस्र के समुदायों और अधिकारियों के साथ मिलकर इस सामग्री के संवेदनशील रूप में प्रदर्शन के तरीके खोजने पर विचार करेंगे. म्यूजियम की वरिष्ठ क्यूरेटर डॉ. मेलनी पिटकिन ने कहा, सैकड़ों साल से शरीर के हिस्सों को संग्रहालयों में वस्तु-मात्र समझा जाता रहा है. हम उन्हें प्रदर्शित देखने के इतने आदि हो गए हैं कि भूल जाते हैं कि कभी वे जीते-जागते इंसान थे. डॉ. पिटकिन कहती हैं कि स्थानीय और विदेशों में रहने वाले मिस्री समुदाय के अलावा म्यूजियम देखने आने वाले दर्शकों के बीच मानव अवशेषों को प्रदर्शित करने से जुड़े रवैये और मूल्यों पर हुए विस्तृत और गहन अध्ययन के बाद इन अवशेषों को हटाने का फैसला लिया गया है. संग्रहालय ने अपने दर्शकों के बीच इस बात को लेकर एक सर्वेक्षण किया था. इसके अलावा सिडनी, मेलबर्न और एडीलेड में रहने वाले मिस्री मूल के 17 लोगों के एक फोकस ग्रुप के साथ दो दिन तक विचार-विमर्श किया गया. साथ ही, चाऊ चाक विंग म्यूजियम देख चुके मिस्री मूल के ऑस्ट्रेलियाई लोगों के बीच भी सर्वे किया गया. ममी को ममी ना कहें अब म्यूजियम मानव अवशेषों को प्रदर्शित करते हुए लिखी जाने वाली भाषा और संदेशों में भी बदलाव की योजना पर काम कर रहा है. जैसे कि द ममी रूम का नाम बदला जा सकता है. इसके लिए मिस्र के समुदाय के साथ चर्चा हो रही है. डॉ. पिटकिन बताती हैं, ममी शब्द अरबी भाषा के ममिया से आया है, जिसका अर्थ होता है एक तरह का कोयला. लेप किए जाने के बाद शरीर कैसा दिखता है, यह शब्द उसका प्रतीक है. यह साम्राज्वादी भाषा है जब 19वीं सदी में मिस्र को लेकर पश्चिमी दुनिया में जुनून था. डॉ. पिटकिन कहती हैं कि कमरे का नाम बदलते वक्त हमारा ध्यान मानव शरीर को एक शाश्वत रूप में बदल देने पर होगा, जो असल में ममीकरण का मुख्य मकसद था. वह कहती हैं, हम चाहते हैं कि दर्शक भी इस बात पर विचार करें कि मानव अवशेषों की देखरेख में संग्रहालयों को कितनी नैतिक जटिलताओं का सामना करना पड़ता है.(dw.com)